Author: | Dr Shakuntla Varma | ISBN: | 1230000915595 |
Publisher: | onlinegatha | Publication: | January 30, 2016 |
Imprint: | Language: | English |
Author: | Dr Shakuntla Varma |
ISBN: | 1230000915595 |
Publisher: | onlinegatha |
Publication: | January 30, 2016 |
Imprint: | |
Language: | English |
लेखिका की प्रारमिभक शिक्षा इलाहाबाद व लखनऊ में हुर्इ। बी.ए. सागर विश्वविधालय से एवम एम.ए. व एल-एल. बी. नागपुर विश्वविधालय से किया। 1952 में एम.ए. (हिन्दी) परीक्षा में मेरिट लिस्ट में प्रथम स्थान पाने के कारण नागपुर विश्वविधालय ने स्वर्ण पदक प्रदान किया। फिर, नागपुर से महाविधालयीन शिक्षण की शुरूआत कर अंत में ग्वालियर से स्नातकोत्तर प्राचार्य के पद से सेवानिवृत्त हुर्इ। अध्यापन कार्य अवधि पचास वर्षों से अधिक है। पहले उच्च शिक्षा विभाग में रहकर हिन्दी में कोर्इ तीस वर्ष अध्यापन, शोध, और तुलसीदासकृत रामायण (रामचरित मानस) पढ़ाने का कार्य कर्इ वर्षों तक किया। चिन्मय मिशन से जुड़ने पर संन्यास ग्रहण किया और वे स्वामिनी संविदानन्द के नाम से जानी जाती हैं। चिन्मय मिशन ट्रस्ट, मुम्बर्इ में एक्ज़ीक्यूटिव, एडुकेशन के पद पर देश भर में फैले चिन्मय विधालयों की गुणवत्ता के लिए काम करती रही हैं। अध्यात्म प्रशिक्षु एवं अध्यापकों के लिए उन्होंने श्रीशंकराचार्य की अति कठिन किन्तु अत्यधिक महत्वपूर्ण पुस्तक ''विवके चूणामणि (दो खंड) पर स्वामी चिन्मयानन्द द्वारा की गर्इ टीका का हिन्दी में अनुवाद भी किया है।
लेखिका की प्रारमिभक शिक्षा इलाहाबाद व लखनऊ में हुर्इ। बी.ए. सागर विश्वविधालय से एवम एम.ए. व एल-एल. बी. नागपुर विश्वविधालय से किया। 1952 में एम.ए. (हिन्दी) परीक्षा में मेरिट लिस्ट में प्रथम स्थान पाने के कारण नागपुर विश्वविधालय ने स्वर्ण पदक प्रदान किया। फिर, नागपुर से महाविधालयीन शिक्षण की शुरूआत कर अंत में ग्वालियर से स्नातकोत्तर प्राचार्य के पद से सेवानिवृत्त हुर्इ। अध्यापन कार्य अवधि पचास वर्षों से अधिक है। पहले उच्च शिक्षा विभाग में रहकर हिन्दी में कोर्इ तीस वर्ष अध्यापन, शोध, और तुलसीदासकृत रामायण (रामचरित मानस) पढ़ाने का कार्य कर्इ वर्षों तक किया। चिन्मय मिशन से जुड़ने पर संन्यास ग्रहण किया और वे स्वामिनी संविदानन्द के नाम से जानी जाती हैं। चिन्मय मिशन ट्रस्ट, मुम्बर्इ में एक्ज़ीक्यूटिव, एडुकेशन के पद पर देश भर में फैले चिन्मय विधालयों की गुणवत्ता के लिए काम करती रही हैं। अध्यात्म प्रशिक्षु एवं अध्यापकों के लिए उन्होंने श्रीशंकराचार्य की अति कठिन किन्तु अत्यधिक महत्वपूर्ण पुस्तक ''विवके चूणामणि (दो खंड) पर स्वामी चिन्मयानन्द द्वारा की गर्इ टीका का हिन्दी में अनुवाद भी किया है।