Author: | Sudhir Bansal | ISBN: | 1230000311202 |
Publisher: | OnlineGatha | Publication: | March 13, 2015 |
Imprint: | Language: | Hindi |
Author: | Sudhir Bansal |
ISBN: | 1230000311202 |
Publisher: | OnlineGatha |
Publication: | March 13, 2015 |
Imprint: | |
Language: | Hindi |
सुधीर बंसल की काव्य कृति देखा है का आद्योपान्त पठन करने के बाद पाया कि कवि ने जीवन के सभी क्षेत्रो- सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा धार्मिक में अपनी सजग दृष्टि से अवलोकन करके शब्द चित्रों को सहज कल्पना के रंगों से चित्रित करने का प्रयास किया हैं।
हम सब जानते हैं कि कविता कवि-हृदय की भावनाओं की कलात्मक संवाहिका होती हैं। कवि भी एक सामाजिक प्राणी हैं। वह समाज का एक विशेष जागरूक व्यक्ति होता है जिसकी चेतन प्रज्ञा से सूक्ष्मातिसूक्ष्म घटना भी अछूती नहीं रहती समाज में जीवन मूल्यों के ह्यसोन्मुख होने पर कवि अपनी लेखनी से दिग्भ्रमित जन मानस को जगाने सचेत करने होश में आने और सही दिशा में आचरण करने के लिए अपनी विशिष्ट शैली में प्रेरित करता है।
आज के वैज्ञानिक आर्थिक तथा प्रगतिशील युग में सामाजिक परिवर्तन की गति तो अनपेक्षित रूप से तीव्र हैं किन्तु उसकी दिशा मानव जीवन मूल्यों के सर्वथा प्रतिकूल है।
सुधीर जी को भावी सफल लेखन हेतु शुभकामनाओं के साथ।
सुधीर बंसल की काव्य कृति देखा है का आद्योपान्त पठन करने के बाद पाया कि कवि ने जीवन के सभी क्षेत्रो- सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा धार्मिक में अपनी सजग दृष्टि से अवलोकन करके शब्द चित्रों को सहज कल्पना के रंगों से चित्रित करने का प्रयास किया हैं।
हम सब जानते हैं कि कविता कवि-हृदय की भावनाओं की कलात्मक संवाहिका होती हैं। कवि भी एक सामाजिक प्राणी हैं। वह समाज का एक विशेष जागरूक व्यक्ति होता है जिसकी चेतन प्रज्ञा से सूक्ष्मातिसूक्ष्म घटना भी अछूती नहीं रहती समाज में जीवन मूल्यों के ह्यसोन्मुख होने पर कवि अपनी लेखनी से दिग्भ्रमित जन मानस को जगाने सचेत करने होश में आने और सही दिशा में आचरण करने के लिए अपनी विशिष्ट शैली में प्रेरित करता है।
आज के वैज्ञानिक आर्थिक तथा प्रगतिशील युग में सामाजिक परिवर्तन की गति तो अनपेक्षित रूप से तीव्र हैं किन्तु उसकी दिशा मानव जीवन मूल्यों के सर्वथा प्रतिकूल है।
सुधीर जी को भावी सफल लेखन हेतु शुभकामनाओं के साथ।