Author: | Maharshi Veda Vyasa | ISBN: | 9781310355059 |
Publisher: | Sai ePublications & Sai Shop | Publication: | January 24, 2015 |
Imprint: | Smashwords Edition | Language: | Hindi |
Author: | Maharshi Veda Vyasa |
ISBN: | 9781310355059 |
Publisher: | Sai ePublications & Sai Shop |
Publication: | January 24, 2015 |
Imprint: | Smashwords Edition |
Language: | Hindi |
भाग 1. आदि पर्व
भाग 2. सभा पर्व
भाग 3. वन पर्व
भाग 4. विराट पर्व
भाग 5. उद्योग पर्व
भाग 6. भीष्म पर्व
भाग 7. द्रोण पर्व
भाग 8. कर्ण पर्व
भाग 9. शल्य पर्व
भाग 10. सौपतिक पर्व
भाग 11. स्त्री पर्व
भाग 12. शान्ति पर्व
भाग 13. अनुशासन पर्व
भाग 14. अश्वमेधिक पर्व
भाग 15. आश्रमावासिक पर्व
भाग 16. मौसल पर्व
भाग 17. महाप्रस्थानिक पर्व
भाग 18. स्वर्गारोहण पर्व
--------------------------
१ नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरॊत्तमम
देवीं सरस्वतीं चैव ततॊ जयम उदीरयेत
२ लॊमहर्षणपुत्र उग्रश्रवाः सूतः पौराणिकॊ नैमिषारण्ये शौनकस्य कुलपतेर दवादशवार्षिके सत्रे
३ समासीनान अभ्यगच्छद बरह्मर्षीन संशितव्रतान
विनयावनतॊ भूत्वा कदा चित सूतनन्दनः
४ तम आश्रमम अनुप्राप्तं नैमिषारण्यवासिनः
चित्राः शरॊतुं कथास तत्र परिवव्रुस तपस्विनः
५ अभिवाद्य मुनींस तांस तु सर्वान एव कृताञ्जलिः
अपृच्छत स तपॊवृद्धिं सद्भिश चैवाभिनन्दितः
६ अथ तेषूपविष्टेषु सर्वेष्व एव तपस्विषु
निर्दिष्टम आसनं भेजे विनयाल लॊमहर्षणिः
७ सुखासीनं ततस तं तु विश्रान्तम उपलक्ष्य च
अथापृच्छद ऋषिस तत्र कश चित परस्तावयन कथाः
८ कृत आगम्यते सौते कव चायं विहृतस तवया
कालः कमलपत्राक्ष शंसैतत पृच्छतॊ मम
९ [सूत]
जनमेजयस्य राजर्षेः सर्पसत्रे महात्मनः
समीपे पार्थिवेन्द्रस्य सम्यक पारिक्षितस्य च
१० कृष्णद्वैपायन परॊक्ताः सुपुण्या विविधाः कथाः
कथिताश चापि विधिवद या वैशम्पायनेन वै
११ शरुत्वाहं ता विचित्रार्था महाभारत संश्रिताः
बहूनि संपरिक्रम्य तीर्थान्य आयतनानि च
१२ समन्तपञ्चकं नाम पुण्यं दविजनिषेवितम
गतवान अस्मि तं देशं युद्धं यत्राभवत पुरा
पाण्डवानां कुरूणां च सर्वेषां च महीक्षिताम
भाग 1. आदि पर्व
भाग 2. सभा पर्व
भाग 3. वन पर्व
भाग 4. विराट पर्व
भाग 5. उद्योग पर्व
भाग 6. भीष्म पर्व
भाग 7. द्रोण पर्व
भाग 8. कर्ण पर्व
भाग 9. शल्य पर्व
भाग 10. सौपतिक पर्व
भाग 11. स्त्री पर्व
भाग 12. शान्ति पर्व
भाग 13. अनुशासन पर्व
भाग 14. अश्वमेधिक पर्व
भाग 15. आश्रमावासिक पर्व
भाग 16. मौसल पर्व
भाग 17. महाप्रस्थानिक पर्व
भाग 18. स्वर्गारोहण पर्व
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१ नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरॊत्तमम
देवीं सरस्वतीं चैव ततॊ जयम उदीरयेत
२ लॊमहर्षणपुत्र उग्रश्रवाः सूतः पौराणिकॊ नैमिषारण्ये शौनकस्य कुलपतेर दवादशवार्षिके सत्रे
३ समासीनान अभ्यगच्छद बरह्मर्षीन संशितव्रतान
विनयावनतॊ भूत्वा कदा चित सूतनन्दनः
४ तम आश्रमम अनुप्राप्तं नैमिषारण्यवासिनः
चित्राः शरॊतुं कथास तत्र परिवव्रुस तपस्विनः
५ अभिवाद्य मुनींस तांस तु सर्वान एव कृताञ्जलिः
अपृच्छत स तपॊवृद्धिं सद्भिश चैवाभिनन्दितः
६ अथ तेषूपविष्टेषु सर्वेष्व एव तपस्विषु
निर्दिष्टम आसनं भेजे विनयाल लॊमहर्षणिः
७ सुखासीनं ततस तं तु विश्रान्तम उपलक्ष्य च
अथापृच्छद ऋषिस तत्र कश चित परस्तावयन कथाः
८ कृत आगम्यते सौते कव चायं विहृतस तवया
कालः कमलपत्राक्ष शंसैतत पृच्छतॊ मम
९ [सूत]
जनमेजयस्य राजर्षेः सर्पसत्रे महात्मनः
समीपे पार्थिवेन्द्रस्य सम्यक पारिक्षितस्य च
१० कृष्णद्वैपायन परॊक्ताः सुपुण्या विविधाः कथाः
कथिताश चापि विधिवद या वैशम्पायनेन वै
११ शरुत्वाहं ता विचित्रार्था महाभारत संश्रिताः
बहूनि संपरिक्रम्य तीर्थान्य आयतनानि च
१२ समन्तपञ्चकं नाम पुण्यं दविजनिषेवितम
गतवान अस्मि तं देशं युद्धं यत्राभवत पुरा
पाण्डवानां कुरूणां च सर्वेषां च महीक्षिताम