Manovratti Aur Lanchan (Hindi)

Fiction & Literature, Short Stories, Literary
Cover of the book Manovratti Aur Lanchan (Hindi) by Premchand, Sai ePublications & Sai Shop
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Author: Premchand ISBN: 9781329908925
Publisher: Sai ePublications & Sai Shop Publication: December 1, 2016
Imprint: Sai ePublications & Sai Shop Language: English
Author: Premchand
ISBN: 9781329908925
Publisher: Sai ePublications & Sai Shop
Publication: December 1, 2016
Imprint: Sai ePublications & Sai Shop
Language: English

मनोवृत्तिएक सुंदर युवती, प्रात:काल, गाँधी-पार्क में बिल्लौर के बेंच पर गहरी नींद में सोयी पायी जाय, यह चौंका देनेवाली बात है। सुंदरियाँ पार्कों में हवा खाने आती हैं, हँसती हैं, दौड़ती हैं, फूल-पौधों से खेलती हैं, किसी का इधर ध्यान नहीं जाता; लेकिन कोई युवती रविश के किनारे वाले बेंच पर बेखबर सोये, यह बिलकुल गैर मामूली बात है, अपनी ओर बल-पूर्वक आकर्षित करने वाली। रविश पर कितने आदमी चहलकदमी कर रहे हैं, बूढ़े भी, जवान भी, सभी एक क्षण के लिए वहाँ ठिठक जाते हैं, एक नजर वह दृश्य देखते हैं और तब चले जाते हैं। युवकवृंद रहस्यभाव से मुसकिराते हुए, वृद्धजन चिंता-भाव से सिर हिलाते हुए और युवतियाँ लज्जा से आँखें नीचे किये हुए।बसंत और हाशिम निकर और बनियान पहने नंगे पाँव दौड़ रहे हैं। बड़े दिन की छुट्टियों में ओलिंपियन रेस होनेवाला है, दोनों उसी की तैयारी कर रहे हैं। दोनों इस स्थल पर पहुँचकर रुक जाते हैं और दबी आँखो से युवती को देखकर आपस में खयाल दौड़ाने लगते हैं।बसंत ने कहा- इसे और कहीं सोने की जगह ही नहीं मिली।हाशिम ने जवाब दिया- कोई वेश्या है।'लेकिन वेश्याएँ भी तो इस तरह बेशर्मी नहीं करतीं।'------------------लांछनअगर संसार में ऐसा प्राणी होता, जिसकी आँखें लोगों के हृदयों के भीतर घुस सकतीं, तो ऐसे बहुत कम स्त्री-पुरुष होंगे, जो उसके सामने सीधी आँखें करके ताक सकते ! महिला-आश्रम की जुगनूबाई के विषय में लोगों की धारणा कुछ ऐसी ही हो गयी थी। वह बेपढ़ी-लिखी, गरीब, बूढ़ी औरत थी, देखने में बड़ी सरल, बड़ी हँसमुख; लेकिन जैसे किसी चतुर प्रूफरीडर की निगाह गलतियों ही पर जा पड़ती है; उसी तरह उसकी आँखें भी बुराइयों ही पर पहुँच जाती थीं। शहर में ऐसी कोई महिला न थी; जिसके विषय में दो-चार लुकी-छिपी बातें उसे न मालूम हों। उसका ठिगना स्थूल शरीर, सिर के खिचड़ी बाल, गोल मुँह, फूले-फूले गाल, छोटी-छोटी आँखें उसके स्वभाव की प्रखरता और तेजी पर परदा-सा डाले रहती थीं; लेकिन जब वह किसी की कुत्सा करने लगती, तो उसकी आकृति कठोर हो जाती, आँखें फैल जातीं और कंठ-स्वर कर्कश हो जाता। उसकी चाल में बिल्लियों का-सा संयम था; दबे पाँव धीरे-धीरे चलती, पर शिकार की आहट पाते ही, जस्त मारने को तैयार हो जाती थी। उसका काम था, महिला-आश्रम में महिलाओं की सेवा-टहल करना; पर महिलाएँ उसकी सूरत से काँपत

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मनोवृत्तिएक सुंदर युवती, प्रात:काल, गाँधी-पार्क में बिल्लौर के बेंच पर गहरी नींद में सोयी पायी जाय, यह चौंका देनेवाली बात है। सुंदरियाँ पार्कों में हवा खाने आती हैं, हँसती हैं, दौड़ती हैं, फूल-पौधों से खेलती हैं, किसी का इधर ध्यान नहीं जाता; लेकिन कोई युवती रविश के किनारे वाले बेंच पर बेखबर सोये, यह बिलकुल गैर मामूली बात है, अपनी ओर बल-पूर्वक आकर्षित करने वाली। रविश पर कितने आदमी चहलकदमी कर रहे हैं, बूढ़े भी, जवान भी, सभी एक क्षण के लिए वहाँ ठिठक जाते हैं, एक नजर वह दृश्य देखते हैं और तब चले जाते हैं। युवकवृंद रहस्यभाव से मुसकिराते हुए, वृद्धजन चिंता-भाव से सिर हिलाते हुए और युवतियाँ लज्जा से आँखें नीचे किये हुए।बसंत और हाशिम निकर और बनियान पहने नंगे पाँव दौड़ रहे हैं। बड़े दिन की छुट्टियों में ओलिंपियन रेस होनेवाला है, दोनों उसी की तैयारी कर रहे हैं। दोनों इस स्थल पर पहुँचकर रुक जाते हैं और दबी आँखो से युवती को देखकर आपस में खयाल दौड़ाने लगते हैं।बसंत ने कहा- इसे और कहीं सोने की जगह ही नहीं मिली।हाशिम ने जवाब दिया- कोई वेश्या है।'लेकिन वेश्याएँ भी तो इस तरह बेशर्मी नहीं करतीं।'------------------लांछनअगर संसार में ऐसा प्राणी होता, जिसकी आँखें लोगों के हृदयों के भीतर घुस सकतीं, तो ऐसे बहुत कम स्त्री-पुरुष होंगे, जो उसके सामने सीधी आँखें करके ताक सकते ! महिला-आश्रम की जुगनूबाई के विषय में लोगों की धारणा कुछ ऐसी ही हो गयी थी। वह बेपढ़ी-लिखी, गरीब, बूढ़ी औरत थी, देखने में बड़ी सरल, बड़ी हँसमुख; लेकिन जैसे किसी चतुर प्रूफरीडर की निगाह गलतियों ही पर जा पड़ती है; उसी तरह उसकी आँखें भी बुराइयों ही पर पहुँच जाती थीं। शहर में ऐसी कोई महिला न थी; जिसके विषय में दो-चार लुकी-छिपी बातें उसे न मालूम हों। उसका ठिगना स्थूल शरीर, सिर के खिचड़ी बाल, गोल मुँह, फूले-फूले गाल, छोटी-छोटी आँखें उसके स्वभाव की प्रखरता और तेजी पर परदा-सा डाले रहती थीं; लेकिन जब वह किसी की कुत्सा करने लगती, तो उसकी आकृति कठोर हो जाती, आँखें फैल जातीं और कंठ-स्वर कर्कश हो जाता। उसकी चाल में बिल्लियों का-सा संयम था; दबे पाँव धीरे-धीरे चलती, पर शिकार की आहट पाते ही, जस्त मारने को तैयार हो जाती थी। उसका काम था, महिला-आश्रम में महिलाओं की सेवा-टहल करना; पर महिलाएँ उसकी सूरत से काँपत

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