हर्ष ने राज्यवर्धन को युद्ध के लिए जाते हुए देखा था : वह रूप ही जैसे कोई और था। अट्ठारह वर्षों का वय। लम्बा-ऊँचा, कवच-रक्षित की आभा; और उन सब पर छाया हुआ अमदनीय आत्मविश्वास! और अब दो वर्षों के पश्चचात लौट रहे हैं राज्यवर्धन-हूण-युद्ध के अनेक छत लिए, घायल शरीर। घावों पर बँधी हुई लम्बी-लम्बी सफेद पट्टियाँ। युद्ध की कठोरता, घावों की पीड़ा यात्रा की थकान और पिता की मृत्यु की सूचना की यातना ने राज्यवर्धन का रूप ही बदल दिया था। न मुख पर तेज था, न आँखों में चमक। आत्मविश्वास और उल्लास जैसे मिट गया था। मुख पर एक प्रकार की उदासीनता थी और दीनता भी। शरीर दुबला हो गया था। सिर पर चूड़ामणि और शेखर भी नहीं थे। कानों में इन्द्रनीलिका के स्थान पर पवित्री पड़ी हुई थी। बहुत दिनों के रोगी जैसे लग रहे थे भैया! चःतुशाल में वतर्दिका पर रखे आसन पर बैठ थे-खिन्न और उदास!
हर्ष ने राज्यवर्धन को युद्ध के लिए जाते हुए देखा था : वह रूप ही जैसे कोई और था। अट्ठारह वर्षों का वय। लम्बा-ऊँचा, कवच-रक्षित की आभा; और उन सब पर छाया हुआ अमदनीय आत्मविश्वास! और अब दो वर्षों के पश्चचात लौट रहे हैं राज्यवर्धन-हूण-युद्ध के अनेक छत लिए, घायल शरीर। घावों पर बँधी हुई लम्बी-लम्बी सफेद पट्टियाँ। युद्ध की कठोरता, घावों की पीड़ा यात्रा की थकान और पिता की मृत्यु की सूचना की यातना ने राज्यवर्धन का रूप ही बदल दिया था। न मुख पर तेज था, न आँखों में चमक। आत्मविश्वास और उल्लास जैसे मिट गया था। मुख पर एक प्रकार की उदासीनता थी और दीनता भी। शरीर दुबला हो गया था। सिर पर चूड़ामणि और शेखर भी नहीं थे। कानों में इन्द्रनीलिका के स्थान पर पवित्री पड़ी हुई थी। बहुत दिनों के रोगी जैसे लग रहे थे भैया! चःतुशाल में वतर्दिका पर रखे आसन पर बैठ थे-खिन्न और उदास!