प्रेमचन्द का श्रेष्ठ उपन्यास गबन जिसमें उन्होंने पैसे के गबन की जो समस्या उठाई है वह कुछ बदले हुए रूप में प्रस्तुत है...जिंदगी की वह उम्र, जब इंसान को मुहब्बत की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, बचपन है। उस वक्त पौधे को तरी मिल जाये, तो जिंदगी भर के लिए उसकी जड़े मजबूत हो जाती हैं। उस वक्त खुराक न पाकर उसकी जिंदगी खुश्क हो जाती है। मेरी माँ का उसी जमाने में देहान्त हुआ और तब से मेरी रूह को खुराक नहीं मिली। वही भूख मेरी जिंदगी है। और फिर दूसरी माँ के आ जाने का भी शायद वह अपना ही अनुभव है, जिसे मुंशी जी ने उसी अमरकान्त की कहानी सुनाते हुए यों व्यक्त किया है:
प्रेमचन्द का श्रेष्ठ उपन्यास गबन जिसमें उन्होंने पैसे के गबन की जो समस्या उठाई है वह कुछ बदले हुए रूप में प्रस्तुत है...जिंदगी की वह उम्र, जब इंसान को मुहब्बत की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, बचपन है। उस वक्त पौधे को तरी मिल जाये, तो जिंदगी भर के लिए उसकी जड़े मजबूत हो जाती हैं। उस वक्त खुराक न पाकर उसकी जिंदगी खुश्क हो जाती है। मेरी माँ का उसी जमाने में देहान्त हुआ और तब से मेरी रूह को खुराक नहीं मिली। वही भूख मेरी जिंदगी है। और फिर दूसरी माँ के आ जाने का भी शायद वह अपना ही अनुभव है, जिसे मुंशी जी ने उसी अमरकान्त की कहानी सुनाते हुए यों व्यक्त किया है: