‘होरी’ नाटक नहीं है प्रेमचंद जी के प्रसिद्ध उपन्यास गोदान का नाट्यरूपान्तर है। इसीलिये उसकी सीमाएँ हैं। प्रेमचंद और गोदान के बारे में कुछ कहने का न यह समय है और न उतना स्थान ही है। इतना कहना पर्याप्त होगा कि गोदान जन-जीवन के साहित्यकार प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है। इसमें उन्होंने अभावग्रस्त भारतीय किसान की जीवन-गाथा का चित्र उपस्थित किया है। देहात की वास्तविक दशा का खाका खींचा है। इसमें हमारे ग्रामीण-जीवन की आशा-निराशा, सरलता-कुटिलता, प्रेम-घृणा, गुण-दोष सभी का मनोहारी चित्रण हुआ है। उपन्यास में एक दूसरी धारा भी है। वह है नगर सभ्यता की धारा जो ग्रामीण-जीवन के विरोध में उभरी है। प्रस्तुत रूपान्तर में उसे बिलकुल छोड़ देना पड़ा है। उसका कारण नाटक की सीमाएँ हैं।
‘होरी’ नाटक नहीं है प्रेमचंद जी के प्रसिद्ध उपन्यास गोदान का नाट्यरूपान्तर है। इसीलिये उसकी सीमाएँ हैं। प्रेमचंद और गोदान के बारे में कुछ कहने का न यह समय है और न उतना स्थान ही है। इतना कहना पर्याप्त होगा कि गोदान जन-जीवन के साहित्यकार प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है। इसमें उन्होंने अभावग्रस्त भारतीय किसान की जीवन-गाथा का चित्र उपस्थित किया है। देहात की वास्तविक दशा का खाका खींचा है। इसमें हमारे ग्रामीण-जीवन की आशा-निराशा, सरलता-कुटिलता, प्रेम-घृणा, गुण-दोष सभी का मनोहारी चित्रण हुआ है। उपन्यास में एक दूसरी धारा भी है। वह है नगर सभ्यता की धारा जो ग्रामीण-जीवन के विरोध में उभरी है। प्रस्तुत रूपान्तर में उसे बिलकुल छोड़ देना पड़ा है। उसका कारण नाटक की सीमाएँ हैं।