जिंदगी को इस तरह नहीं लिया जा सकता कि वह यहाँ से शुरू है और यहाँ खत्म, बहुत सोचने के बाद मेरा यही विचार बना, क्योंकि जहाँ से शुरू का छोर पकड़ती हूँ, वहीं डोर छिटक जाती है। क्या जन्म से मनुष्य का जीवन शुरू होता है ? नहीं, तब तो उसका जीवन माता के हाथों होता है, जिनमें पल-बढ़कर वह कुछ ऐसी बातें सीखता है, जो उसके जीने के लिए जरूरी होता हैं। तब क्या बाल्यकाल से उसकी जिंदगी की शुरुआत मानी जाए, जब वह खुद अपने जरूरी कार्य करने लायक हो जाता है ? नहीं, तब भी उसके आसपास परिजन और गुरुजन होते हैं, जो उसे इस संसार के बारे में जाने-अनजाने बताते रहते हैं और खतरों से सचेत करते हैं। यानी उसने भी अपने जीवन की शुरुआत अपने ढंग से, अपनी सामर्थ्य से नहीं की होती। फिर उसका समय कौन-सा होता है ? कथाकार मैत्रेयी पुष्पा ने प्रस्तुत संकलन में अपनी जिन कहानियों को प्रस्तुत किया है, वे हैं: ‘फैसला’, ‘तुम किसकी हो बिन्नी’, ‘उज्रदारी’, ‘छुटकारा’, ‘गोमा हँसती है’, ‘बिछुड़े हुए’, ‘पगला गई है भागवती’, ‘ताला खुला है पापा’, ‘रिजक’, तथा ‘राय प्रवीण’ आदि।
जिंदगी को इस तरह नहीं लिया जा सकता कि वह यहाँ से शुरू है और यहाँ खत्म, बहुत सोचने के बाद मेरा यही विचार बना, क्योंकि जहाँ से शुरू का छोर पकड़ती हूँ, वहीं डोर छिटक जाती है। क्या जन्म से मनुष्य का जीवन शुरू होता है ? नहीं, तब तो उसका जीवन माता के हाथों होता है, जिनमें पल-बढ़कर वह कुछ ऐसी बातें सीखता है, जो उसके जीने के लिए जरूरी होता हैं। तब क्या बाल्यकाल से उसकी जिंदगी की शुरुआत मानी जाए, जब वह खुद अपने जरूरी कार्य करने लायक हो जाता है ? नहीं, तब भी उसके आसपास परिजन और गुरुजन होते हैं, जो उसे इस संसार के बारे में जाने-अनजाने बताते रहते हैं और खतरों से सचेत करते हैं। यानी उसने भी अपने जीवन की शुरुआत अपने ढंग से, अपनी सामर्थ्य से नहीं की होती। फिर उसका समय कौन-सा होता है ? कथाकार मैत्रेयी पुष्पा ने प्रस्तुत संकलन में अपनी जिन कहानियों को प्रस्तुत किया है, वे हैं: ‘फैसला’, ‘तुम किसकी हो बिन्नी’, ‘उज्रदारी’, ‘छुटकारा’, ‘गोमा हँसती है’, ‘बिछुड़े हुए’, ‘पगला गई है भागवती’, ‘ताला खुला है पापा’, ‘रिजक’, तथा ‘राय प्रवीण’ आदि।