Author: | Ashish Kumar | ISBN: | 1230001729696 |
Publisher: | OnlineGatha | Publication: | June 23, 2017 |
Imprint: | OnlineGatha | Language: | English |
Author: | Ashish Kumar |
ISBN: | 1230001729696 |
Publisher: | OnlineGatha |
Publication: | June 23, 2017 |
Imprint: | OnlineGatha |
Language: | English |
उस समय देव की उम्र कुछ आठ बरस की रही होगी। हाँ! मुझे ठीक-2 याद आता है।
‘‘लोग कैसे शादी कर लेते हैं?’’ देव बड़े आष्चर्य से मुझसे पूछता।
‘‘.....आखिर कैसे कोई लड़का किसी लड़की को सारी ज़िन्दगी झेलता रहता है?’’
‘‘.....आखिर कैसे वो उस लड़की को सारी ज़िन्दगी देख-2 कर भी बोर नहीं होता?’’
‘‘.....आखिर कैसे वो उस लड़की के साथ पूरी ज़िन्दगी काट देता है?’’ वो बड़ी बेचैनी से मुझसे पूछता था जब पड़ोस में किसी लड़के की शादी होती थी और नई वधू का घर में प्रवेष होता था।
‘‘इस बात का जवाब तो इस वक़्त मेरे पास नहीं है देव!’’ इसका जवाब तो समय के पास ही है।‘‘ मैं उसे समझाता था।
‘‘नहीं! नहीं! मुझे आज ही, अभी ही जवाब चाहिए!’’ वो ज़िद करता था और मेरा जीना हराम कर देता था।
‘‘ठीक है! अगर तू सुनना ही चाहता है तो सुन ले।’’ मैं भारी शब्दों में कहता था।
उस समय देव की उम्र कुछ आठ बरस की रही होगी। हाँ! मुझे ठीक-2 याद आता है।
‘‘लोग कैसे शादी कर लेते हैं?’’ देव बड़े आष्चर्य से मुझसे पूछता।
‘‘.....आखिर कैसे कोई लड़का किसी लड़की को सारी ज़िन्दगी झेलता रहता है?’’
‘‘.....आखिर कैसे वो उस लड़की को सारी ज़िन्दगी देख-2 कर भी बोर नहीं होता?’’
‘‘.....आखिर कैसे वो उस लड़की के साथ पूरी ज़िन्दगी काट देता है?’’ वो बड़ी बेचैनी से मुझसे पूछता था जब पड़ोस में किसी लड़के की शादी होती थी और नई वधू का घर में प्रवेष होता था।
‘‘इस बात का जवाब तो इस वक़्त मेरे पास नहीं है देव!’’ इसका जवाब तो समय के पास ही है।‘‘ मैं उसे समझाता था।
‘‘नहीं! नहीं! मुझे आज ही, अभी ही जवाब चाहिए!’’ वो ज़िद करता था और मेरा जीना हराम कर देता था।
‘‘ठीक है! अगर तू सुनना ही चाहता है तो सुन ले।’’ मैं भारी शब्दों में कहता था।