वर्तमान युग में ‘प्रगतिशील’ एक पारिभाषिक शब्द हो गया है। इसका अर्थ है योरप के सोलहवीं शताब्दी और उसके परवर्ती मीमांसकों द्वारा बताए हुए मार्ग का अनुकरण करने वाला। इनमें से अधिकांश मीमांसक अनात्मवादी थे। इनके अनात्मवाद के व्यापक प्रचार का कारण था ईसाईमत का अनर्गल आत्मवाद, जो केवल निष्ठा पर आधारित था। बुद्धिवाद के सम्मुख वह स्थिर नहीं रह सका। ईसाई मतावलम्बियों की अन्ध-निष्ठा ने प्राचीन यूनानी जीवन मीमांसा का विनाश कर दिया था। यूनानी जीवन मीमांसा में अनात्मवाद का विरोध करने की क्षमता थी। उस मीमांसा का संक्षिप्त स्वरूप सुकरात के इन शब्दों में दिखाई देगा, ‘‘सदाचार के अनुवर्तन (यम-नियम-पालन) से सम्यक्ज्ञान उत्पन्न होता है। वह ज्ञान साधारणमनुष्य में उत्पन्न होने वाले सामान्य ज्ञान से भिन्न होता है...सम्यक्ज्ञान उत्कृष्ट गुणयुक्त है। व्यापक विचारों (विवेक) से उसकी उत्पत्ति होती है।’’
वर्तमान युग में ‘प्रगतिशील’ एक पारिभाषिक शब्द हो गया है। इसका अर्थ है योरप के सोलहवीं शताब्दी और उसके परवर्ती मीमांसकों द्वारा बताए हुए मार्ग का अनुकरण करने वाला। इनमें से अधिकांश मीमांसक अनात्मवादी थे। इनके अनात्मवाद के व्यापक प्रचार का कारण था ईसाईमत का अनर्गल आत्मवाद, जो केवल निष्ठा पर आधारित था। बुद्धिवाद के सम्मुख वह स्थिर नहीं रह सका। ईसाई मतावलम्बियों की अन्ध-निष्ठा ने प्राचीन यूनानी जीवन मीमांसा का विनाश कर दिया था। यूनानी जीवन मीमांसा में अनात्मवाद का विरोध करने की क्षमता थी। उस मीमांसा का संक्षिप्त स्वरूप सुकरात के इन शब्दों में दिखाई देगा, ‘‘सदाचार के अनुवर्तन (यम-नियम-पालन) से सम्यक्ज्ञान उत्पन्न होता है। वह ज्ञान साधारणमनुष्य में उत्पन्न होने वाले सामान्य ज्ञान से भिन्न होता है...सम्यक्ज्ञान उत्कृष्ट गुणयुक्त है। व्यापक विचारों (विवेक) से उसकी उत्पत्ति होती है।’’