शायरी मेरे लिए ‘पेशा’ नहीं ‘इबादत’ है और ग़ज़ल मेरी ‘मोहब्बत’। इसलिए मैं ग़ज़ल को हिन्दी-उर्दू के नाम पर बांटे जाने का क़ायल नहीं हूँ, बल्कि फ़िक्रमन्द हूँ कि तलफ़्फ़ुज़ों की जिरह और बयान के झगड़े, ग़ज़ल की जान न ले लें ज़बान के झगड़े। बहरहाल, ईश्वरीय कृपा और आप सब की शुभकामनाओं के सहारे यह संकलन आपके हवाले है। भरसक सावधानी के बाद भी संकलन में त्रुटियाँ हो सकती हैं। उनके लिए क्षमा-याचना सहित आपसे निवेदन इतना है कि मेरी तारीफ़ नहीं, मेरी शिकायत लिखिए, आप जो चाहे लिखें ख़त में, मगर ख़त लिखिए।
शायरी मेरे लिए ‘पेशा’ नहीं ‘इबादत’ है और ग़ज़ल मेरी ‘मोहब्बत’। इसलिए मैं ग़ज़ल को हिन्दी-उर्दू के नाम पर बांटे जाने का क़ायल नहीं हूँ, बल्कि फ़िक्रमन्द हूँ कि तलफ़्फ़ुज़ों की जिरह और बयान के झगड़े, ग़ज़ल की जान न ले लें ज़बान के झगड़े। बहरहाल, ईश्वरीय कृपा और आप सब की शुभकामनाओं के सहारे यह संकलन आपके हवाले है। भरसक सावधानी के बाद भी संकलन में त्रुटियाँ हो सकती हैं। उनके लिए क्षमा-याचना सहित आपसे निवेदन इतना है कि मेरी तारीफ़ नहीं, मेरी शिकायत लिखिए, आप जो चाहे लिखें ख़त में, मगर ख़त लिखिए।