रवीन्द्रनाथ सिर्फ कवि ही नहीं, यहां तक कि निबंधकार, उपन्यासकार, कहानीकार ही नहीं थे, वे इन सबसे अलग कुछ और भी थे। इस किताब में मैंने उनके सामाजिक और राजनैतिक विचारों पर बल दिया है। हालांकि उन्होंने अपने बारे में कहा है कि वे सिर्फ एक ''कवि'' ही हैं, लेकिन हम लोग जानते हैं कि यह बात पूरी तरह से सच नहीं है। इसके अलावा साहित्यकार रवीन्द्रनाथ के बारे में न जाने कितना कुछ कहा और लिखा जाता है, इसीलिए मैंने रवीन्द्रनाथ के एक दूसरे रूप के बारे में ज्यादा जोर दिया है। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक इस देश की तरह-तरह की घटनाओं ने उन्हें प्रभावित किया था, इस बारे में उन्होंने लंबे बयानों और निबंधों के जरिए अपनी राय जाहिर की थी। बचपन में हिन्दू मेला में वे स्वदेशी की जिस विचारधारा से प्रभावित हुए थे, वे जीवन भर उसी का पालन करते रहे।
रवीन्द्रनाथ सिर्फ कवि ही नहीं, यहां तक कि निबंधकार, उपन्यासकार, कहानीकार ही नहीं थे, वे इन सबसे अलग कुछ और भी थे। इस किताब में मैंने उनके सामाजिक और राजनैतिक विचारों पर बल दिया है। हालांकि उन्होंने अपने बारे में कहा है कि वे सिर्फ एक ''कवि'' ही हैं, लेकिन हम लोग जानते हैं कि यह बात पूरी तरह से सच नहीं है। इसके अलावा साहित्यकार रवीन्द्रनाथ के बारे में न जाने कितना कुछ कहा और लिखा जाता है, इसीलिए मैंने रवीन्द्रनाथ के एक दूसरे रूप के बारे में ज्यादा जोर दिया है। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक इस देश की तरह-तरह की घटनाओं ने उन्हें प्रभावित किया था, इस बारे में उन्होंने लंबे बयानों और निबंधों के जरिए अपनी राय जाहिर की थी। बचपन में हिन्दू मेला में वे स्वदेशी की जिस विचारधारा से प्रभावित हुए थे, वे जीवन भर उसी का पालन करते रहे।