Prem Chaturthi (Hindi Stories)

प्रेम चतुर्थी

Nonfiction, Health & Well Being, Self Help, Self Improvement, Stress Management, Fiction & Literature
Cover of the book Prem Chaturthi (Hindi Stories) by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द, Bhartiya Sahitya Inc.
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Author: Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द ISBN: 9781613011782
Publisher: Bhartiya Sahitya Inc. Publication: February 28, 2012
Imprint: Language: Hindi
Author: Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
ISBN: 9781613011782
Publisher: Bhartiya Sahitya Inc.
Publication: February 28, 2012
Imprint:
Language: Hindi
प्रेमचंद की चार चुनिंदा कहानियों का संग्रह... लखनऊ नेशनल बैंक के दफ्तर में लाला साईंदास आरामकुर्सी पर लेटे हुए शेयरों का भाव देख रहे थे और सोच रहे थे कि इस बार हिस्सेदारों को मुनाफ़ा कहाँ से दिया जायगा? चाय, कोयला या जूट के हिस्से खरीदने, चाँदी, सोने या रुई का सट्टा करने का इरादा करते, लेकिन नुकसान के भय से कुछ तय न कर पाते थे। नाज के व्यापार में इस ओर बड़ा घाटा रहा, हिस्सेदारों के ढाढ़स के लिए हानि-लाभ का कल्पित ब्यौरा दिखाना पड़ा और नफा पूँजी से देना पड़ा। इससे फिर नाज के व्यापार में हाथ डालते जी काँपता था। पर रुपये को बेकार पड़ा रखना असम्भव था। दो-एक दिन में उसे कहीं-न-कहीं लगाने का उचित उपाय करना जरूरी था, क्योंकि डाइरेक्टरों की तिमाही बैठक एक ही सप्ताह में होनेवाली थी, यदि उस समय तक कोई निश्चय न हुआ, तो आगे तीन महीनों तक फिर कुछ न हो सकेगा और छमाही मुनाफे के बँटवारे के समय फिर वही फरजी कार्रवाई करनी पड़ेगी, जिसको बार-बार सहन करना बैंक के लिए कठिन था।
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प्रेमचंद की चार चुनिंदा कहानियों का संग्रह... लखनऊ नेशनल बैंक के दफ्तर में लाला साईंदास आरामकुर्सी पर लेटे हुए शेयरों का भाव देख रहे थे और सोच रहे थे कि इस बार हिस्सेदारों को मुनाफ़ा कहाँ से दिया जायगा? चाय, कोयला या जूट के हिस्से खरीदने, चाँदी, सोने या रुई का सट्टा करने का इरादा करते, लेकिन नुकसान के भय से कुछ तय न कर पाते थे। नाज के व्यापार में इस ओर बड़ा घाटा रहा, हिस्सेदारों के ढाढ़स के लिए हानि-लाभ का कल्पित ब्यौरा दिखाना पड़ा और नफा पूँजी से देना पड़ा। इससे फिर नाज के व्यापार में हाथ डालते जी काँपता था। पर रुपये को बेकार पड़ा रखना असम्भव था। दो-एक दिन में उसे कहीं-न-कहीं लगाने का उचित उपाय करना जरूरी था, क्योंकि डाइरेक्टरों की तिमाही बैठक एक ही सप्ताह में होनेवाली थी, यदि उस समय तक कोई निश्चय न हुआ, तो आगे तीन महीनों तक फिर कुछ न हो सकेगा और छमाही मुनाफे के बँटवारे के समय फिर वही फरजी कार्रवाई करनी पड़ेगी, जिसको बार-बार सहन करना बैंक के लिए कठिन था।

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