Meri Kahaniyan-Pranav Kumar Bandyopadhayay (Hindi Stories)

मेरी कहानियाँ-प्रणव कुमार बन्द्योपाध्याय

Nonfiction, Reference & Language, Foreign Languages, Indic & South Asian Languages, Fiction & Literature, Short Stories, Historical
Cover of the book Meri Kahaniyan-Pranav Kumar Bandyopadhayay (Hindi Stories) by Pranav Kumar Bandyopadhayay, प्रणव कुमार बन्द्योपाध्याय, Bhartiya Sahitya Inc.
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Author: Pranav Kumar Bandyopadhayay, प्रणव कुमार बन्द्योपाध्याय ISBN: 9781613012116
Publisher: Bhartiya Sahitya Inc. Publication: March 10, 2013
Imprint: Language: Hindi
Author: Pranav Kumar Bandyopadhayay, प्रणव कुमार बन्द्योपाध्याय
ISBN: 9781613012116
Publisher: Bhartiya Sahitya Inc.
Publication: March 10, 2013
Imprint:
Language: Hindi
इस संसार का अपना एक इतिहास है। तमाम-उखाड़-पछाड़ों के बाद आज भी हम जिस बिंदु तक पहुँचे हैं, हमारे पास जानकारी का दायरा इसके अन्तर्गत बहुत ही नगण्य है। अब जब हम कहानी की बात शुरू करते हैं, हमारी विस्तृति ज़रूर बहुत नहीं हो पाती है, लेकिन शायद हम कुछ गहराई तक पहुँच सकते हैं। हम काफी हद तक जान पाते मनुष्य की संक्रमण और अंतर्मन की कथा। इन्हीं तथ्यों के आधार पर आज की कहानी जिस सामर्थ्य के साथ आ खड़ी हुई है, स्पष्ट रूप में दिखाई नहीं पड़ती है। ऐसा होना अस्वाभाविक तो नहीं है, लेकिन हिंदी की कहानियाँ हमेशा ही इस तथ्य को पुष्ट नहीं करतीं। जो भी हो, मैं कहानी का एक सामान्य लेखक-भर हूँ, कोई आलोचक या विश्लेषक नहीं। हमेशा तो नहीं, लेकिन कई बार कहानी लिखते हुए मैं अपने भीतर शायद किसी सीमा का प्रवेश देख पाता हूँ। संसार के कई टुकड़ों में। उन्हीं में मैं शायद स्वयं को छू भी पाया हूँ। कम से कम अनुभव ऐसा ही हुआ है। मुझे नहीं मालूम कि पाठकों की इस बारे में क्या राय है! उनकी राय अगर इससे आंशिक रूप में या मुमकिन है, पूरी तरह भिन्न भी हुई, मैं चुप रहूँगा। फिर से अपने भीतर घुसने की कोशिश कर, ज़्यादा न सही, दो अंगुली की दूरी लाँघने का प्रयास करता रहूँगा। और जहाँ भी मैं असमर्थ हूँ, अपने पाठकों से कबूल करने में मुझे कोई हिचक नहीं होगी।
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इस संसार का अपना एक इतिहास है। तमाम-उखाड़-पछाड़ों के बाद आज भी हम जिस बिंदु तक पहुँचे हैं, हमारे पास जानकारी का दायरा इसके अन्तर्गत बहुत ही नगण्य है। अब जब हम कहानी की बात शुरू करते हैं, हमारी विस्तृति ज़रूर बहुत नहीं हो पाती है, लेकिन शायद हम कुछ गहराई तक पहुँच सकते हैं। हम काफी हद तक जान पाते मनुष्य की संक्रमण और अंतर्मन की कथा। इन्हीं तथ्यों के आधार पर आज की कहानी जिस सामर्थ्य के साथ आ खड़ी हुई है, स्पष्ट रूप में दिखाई नहीं पड़ती है। ऐसा होना अस्वाभाविक तो नहीं है, लेकिन हिंदी की कहानियाँ हमेशा ही इस तथ्य को पुष्ट नहीं करतीं। जो भी हो, मैं कहानी का एक सामान्य लेखक-भर हूँ, कोई आलोचक या विश्लेषक नहीं। हमेशा तो नहीं, लेकिन कई बार कहानी लिखते हुए मैं अपने भीतर शायद किसी सीमा का प्रवेश देख पाता हूँ। संसार के कई टुकड़ों में। उन्हीं में मैं शायद स्वयं को छू भी पाया हूँ। कम से कम अनुभव ऐसा ही हुआ है। मुझे नहीं मालूम कि पाठकों की इस बारे में क्या राय है! उनकी राय अगर इससे आंशिक रूप में या मुमकिन है, पूरी तरह भिन्न भी हुई, मैं चुप रहूँगा। फिर से अपने भीतर घुसने की कोशिश कर, ज़्यादा न सही, दो अंगुली की दूरी लाँघने का प्रयास करता रहूँगा। और जहाँ भी मैं असमर्थ हूँ, अपने पाठकों से कबूल करने में मुझे कोई हिचक नहीं होगी।

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